name='verify-cj'/> चलते चलते: April 2008

स्वागत

चलते चलते कुछ सुनिए और कुछ सुना जाइए।

Friday 25 April, 2008

फंडा चियर चियर का


कल रात से ही खबरों के हर माध्यम मे IPL चियर गर्ल्स का मुद्दा छाया हुआ है. राजनेताओं को ये बालाएँ देश की संस्कृति के लिए ख़तरा लग रहीं है.कल विभिन्न न्यूज़ चैनलों पर अवतरित हुए नेताओं को कम से कम मैने तो पहले कभी भी किसानों या किसी अन्य गंभीर मुद्दे पर बोलते नही देखा.आश्चर्य है कि सी.पी.आई के वरिष्ठ नेता डी. राजा भी भगवा ब्रिगेड की भाषा बोलते नज़र आए. छात्र जीवन से ही वामपंथ को समझा और जाना है. इलाहाबाद की सड़कों पर खूब नारे लगाएँ हैं.आज डी. राजा के विचार सुनकर कुछ अजीब सा लगा. कोई आश्चर्य नहीं कि एक हिन्दुस्तानी की डायारी वाले अनिल जी के लेख क्यूँ वामपंथ कि दूसरी ही परिभाषा देते हैं.IPL सिर्फ़ क्रिकेट नहीं मनोरंजन का साधन भी है. चियर गर्ल्स इसी मनोरंजन पैकेज का हिस्सा हैं, इन्हे यूँ ही नही निकाला जा सकता.IPL को शुरू हुए सिर्फ़ दो हफ्ते ही हुए हैं पर ICL के दो दौर पूरे हो चुके हैं. चियर गर्ल्स ने ICL में भी भागीदारी की थी. ना तो किसी नेता और ना ही किसी चैनल को तब इस मुद्दे की सुध आई. सवाल नैतिकता का कम और सस्ती लोकप्रियता का ज़्यादा है.IPL की हाइप ज़्यादा है और मूरे देश का ध्यान भी इसी टूर्नामेंट पर लगा हुआ है. ज़ाहिर है, इसके खिलाफ कोई बोलेगा तो सभी का ध्यान एक बार तो ज़रूर जाएगा. नेता भी कभी ये मौका छोड़ते हैं क्या.आम जनमानस मे तो मुझे कोई आक्रोश नही दिखाई देता. अंत मे तो जीत क्रिकेट की ही होती है. सभी को चौके और छक्के याद रहते हैं ना की बालाओं के लटके झटके.काश ये नेता इन मासूम लड़कियों को छोड़कर कुछ काम की बात करते. ये तो बस अपना काम कर रहीं हैं.

Sunday 20 April, 2008

कौन बनेगा पत्रकार नंबर वन मे आपका स्वागत है


ज़माना रियल्टी शो का है. रियल्टी अब इतनी रेयर हो गयी है कि सिर्फ़ टी.वी पर दिखती है. हर एक हुनर अब टी.वी के ज़रिए तलाशा जा रहा है. गाने बजाने तक तो ठीक था, अब नेता भी बुद्धू बक्से से निकलेंगे. माफ़ कीजिएगा, एक नेता जी तो निकल भी चुके हैं. कहाँ है आजकल क्या कर रहे है? मैं भी कितना मूर्ख हूँ कि ये प्रश्न कर बैठा, अरे भाई चैनल का फ़ायदा हो गया और नेता जी भी काफ़ी समय तक टी.वी पर कई मुद्राओं मे भाषण देकर अल्पकालिक प्रसिद्धि पा लिए. अब हम लाख चिल्लाएँ कि भाई हम इतना एसमएसियाए थे हक है हमारा कि हम पूछे नेता जी कहाँ हैं. चिल्लाते रहो चैनल की बाला से. फिर से किसी और हुनरमंद की तलाश होगी और हम फिर से दूर ध्वनि यंत्र के शब्दकोष मे जाकर साक्षिप्त संदेश प्रतिभागी के कोड के साथ भेज देंगे. क्या गाता है, क्या बजाता है या कैसा बोलता है, इसकी किसको फ़िक्र है बस अपने प्रदेश का हों, इतना काफ़ी है. अरे यार अजीब सी उलझन है, हम क्या सारी ज़िंदगी एसमएसीयाते ही रहेंगे. हमे भी तो अपना हुनर दिखना है जनता को, वोट माँगना है. इतना सोच ही रहे थे कि अंदर से आवाज़ आई कि मियाँ कोई हुनर भी है आप में. पता नही कौन नामुराद अंदर से बोलता है पर जब भी बोलता है बात सच ही होती है. अंदर से आई आवाज़ ने अपनी बात फिर से कही, "मियाँ कभी गाना गाए भी हो, बस गर्मी के दिन मे स्नान के वक़्त गाते हो, जाड़े मे तो नहाते नही तो गाओगे कहाँ से." हमने सोचा बात तो सही है, एक बार कॉलेज मे गाया था तो सबने कसम दिलाई थी कि दोबारा हर काम करना पर गाना नही. ये अंदर वाले भाईसाहब को सब पता होता है. अब क्या करें? हमे तो सिर्फ़ खबरों कि दुनिया के दाँव पेच ही आते हैं. तभी एक ख़याल आया, अगर पत्रकार भी रियल्टी शो के द्वारा चुनें जाएँ तो कुछ चांस बनेगा.ज़रा सोचिए मंच जगमगा रहा है और एक सुंदर सी कन्या कहती है, "कौन बनेगा पत्रकार नंबर वन मे आपका स्वागत है." पहला दौर शुरू होता है. मंच पर एक से बढ़कर एक दिग्गज संपादक बैठे हुए हैं. सभी नये मुर्गो से कहा जाता कि स्टोरी आइडिया बताओ. पहला नंबर हमारा, हमने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि विदर्भ.............., बात पूरी भी नही हुई थी कि जजों ने स्कोर दे दिया 'अंडा'. शो का संचालन रही कन्या को हमारे उपर तरस आया तो उसने संपादकों से कहा कि इस नवयुवक को कुछ फीडबैक दें तो ये अगले दौर मे बेहतर करेगा.एक संपादक जिनका नाम ग़ज़ब शर्मा है बोले, "आमा यार तुम ये कौन सी पत्रकारिता पढ़ कर आए हो, इसी तरह बोलते रहोगे तो एक दिन अजायाबघर पहुच जाओगे. कोई भूत प्रेत वाली कहानी बताते तो मैं सुन भी लेता. पता है हमारे चैनल का नाम भारत टी.वी है."दूसरे संपादक जिनका नाम प्यार से साथियों ने दिया है, 'प्रचंड भूतनाथ स्टोरी वाले बाबा जी,' कुछ सोचकर वो बोले, "क्या यार तुम रखी सावंत को नही जानते क्या? फ़र्ज़ी स्टिंग कैसे करते है इसकी ट्रेनिंग तुम्हे नही दी गयी क्या? क्या खाक पत्रकार बन पाओगे. " तभी एक ज़ोर का म्यूज़िक बाज़ता है, और मुझे पीछे से कहा जाता है कि कुछ आँसू बहाओ और माफी माँगो. हमने कहा ई सब हमसे नही होगा. नेपथ्य से एक आवाज़ आती है, अरे यार स्क्रिप्ट मे है तो रोना पड़ेगा ही नही तो बाहर जाओ. ये थे शो के डायरेक्टर अनरियल कुमार.दूसरे नवजवान पत्रकार का नंबर आता है, वो बोलता है..., नही बोलता कम है और चापलूसी ज़्यादा करता है. इस नवजवान का नाम है प्रेतानंद. तो प्रेतनंद जी बोलते हैं, " सर मैं तो आप को ही देख कर बड़ा हुआ हूँ, आप क्या काम करते हैं सर, एकदम छा गये हैं. मेरे पास तो एक बेहतरीन आइडिया है. अगर हम कुतुब मीनार के बाहर प्रोजेक्टर लगा कर किसी का भूत दिखा दें और फिर बोलें कि वो एक प्रेमी कि भटकती हुई आत्मा है जिसे पुलिस ने फ़र्ज़ी मुठभेड़ मे मार गिराया था तो बेहतरीन स्टोरी बनेगी. सर मेरे पास तो काफ़ी सोर्स भी हैं, सब रंगकर्मी हैं और अच्छा अभिनय कर लेते हैं. इंस्पेक्टर से भी बात कर ली है बस उसे ५० सेकेंड तक टी.वी पर दिखाना होगा और आफीशियल बाईट का जुगाड़ भी हो जाएगा."पूरा हाल तालियों कि गड़गड़ाहट के साथ गूँज गया. प्रेतानंद को मिले दस मे दस. हमारा क्या हुआ? पढ़िए अगले अंक में, इसी ब्लॉग पर.

Saturday 19 April, 2008

आई. पी.एल और बहन मायावती


IPL IPL IPL, हर तरफ यही हल्ला मचा है. गोया देश में और कुछ हो ही नही रहा है. अब तक १०० से ज़्यादा बार लोंगो को बता चुका हूँ कि 'भैया' लोंगो कि कोई टीम नही है. बस मन मे ही कई नाम लिए घूम रहे है, लखनऊ नवाब, प्रयाग चैलेनज़र और ना जाने क्या क्या. अजीब सा धर्मसंकट है, हर किसी के पास एक पहचान है.ऐसा हो गया ही कि अगर आपकी कोई टीम नही है तो समझो आप आउटडेटेड हैं. अगला बंदा तरस ख़ाके बोलता है कि कोई बात नही यार अगर यू.पी कि टीम नही है तो तू मेरी टीम को सपोर्ट कर ले . इतना गुस्सा आ रहा है बहन मायावती पर, एक टीम खरीद लेती तो का हो जाता भाई. अरे अभी ताजमहल के अलावा कई चीज़ें हैं यू.पी में बेचने को. अबकी जन्मदिन पर IPL चंदा का नियम हो जाता तो क्या बुरा था. मुलायम भाई भी नही सुन रहे, अनिल अंबानी जी से गहरी दोस्ती है, उनही से कह के एक टीम का जुगाड़ फिट कर देते तो अगले चुनाव मे अच्छा चांस रहता. अब बड़ी मुश्किल हो गयी है आफ़िस जाने में, विदेशी भाई लोंग भी एक एक टीम चुन लिए हैं और लगा रहे है नारा. खुन्न्स खाए हुए हमने अपनी माताश्री फोन किया और पूछा जल्दी बताओ कि क्या हमारे ख़ानदान में कोई मोहाली, बंगलूर, बंबई, दिल्ली, या चेन्नई से है क्या.जवाब आया, कोई प्रतापगढ़ और इलाहाबाद के बाहर से नही आया है और तुम चेन्नई कि बात कर रहे हो. अफ़सोस, ये आप्शन भी गया. तभी एक मित्र ने आइडिया दिया कि जो खिलाड़ी सबसे ज़्यादा पसंद हो उसी कि टीम के साथ तुम भी हाल्लियाओ. ये आइडिया भी फेल, शोएब अख़्तर पसंद हैं, पर वो तो पाकिस्तानी तमाशे का शिकार हो गये हैं. हे राम, पहला मैच आ भी गया और हम अभी भी धर्मसंकट मे थे. लेकिन पहले मैच ने ही हमे दिशा दिखाई, अब कर्नाटक में है तो ज़्यादा लोंग बंगलूर को ही चीयर कर रहे थे, हमने आदतन उल्टी राह पकड़ी और कोलकाता के लिए लगे चिल्लाने. प्रयास व्यर्थ नही गया और हम जीत गये. आहा अब पहचान है हमरे पास, कोरबो, लोरबो, ज़ीतबो रे. आप लोंगो का क्या हाल है?

Friday 18 April, 2008

Laal Salam in Nepal


The jury over Nepal general election is out.
Proving all the predictions wrong, the Nepalese Congress (Mao) has registered a landslide victory. Led by charismatic leader Prachanda, the latest entrant in Nepal politics has sent a stunner to major political players of Nepal. After the poll results, while Prachanda was quick to announce the end of monarchy in Nepal, opposition parties were busy licking their wounds. In the face of it, opposition parties are now left with no other choice than joining the new government led by the Maoists Congress of Nepal.
The history of red march in Nepal is full of twist and turns. In the shadow of monarchy in Nepal, Prachanda decided to take the roads never taken in the history of the country. He had the dream of monarchy-free Nepal, even if it required bloodshed. For more than two decades the Maoists fought for the cause giving and taking lives.
Initially, the government and Narayanhiti palace managed to outcast the rebel fighters as terrorists. In the two decades of killings from both the sides, the cause, the reason and the sacrifices of the red brigade never came out.
Up to an extent, the Maoists are themselves to be blamed for this. Their leaders barely came out from the hiding and the government managed to dub them as a force greedy for money and power.
After the tragic end of the most celebrated King Virendra Vikram Shah and his rule in 2001, Nepal found itself into the certain sea of uncertainty. Major political parties ended up mere puppets in the hands of the new king Gyanendra and the public good held no value in the agenda of the new government.
Inflation was soaring and the prices were on the rise, it was a perfect time for Prachanda and his force to mouth the voice of the common man. He grabbed the opportunity and managed to shed the image of a ‘bloodthirsty’ unit. This was the time when Prachanda evolved as a leader of the masses and decided to play active role in politics. He got a fair share respect in the politics and played an important role in installing the new guard in Nepal in 2006. However, the west countries and political pundits in India never gave him the thumbs-up and underplayed his potential.
Now after proving all the odds wrong, the Maoists will have a task to prove. They will have to break the myth that they can only fight and running a nation is beyond their wings.
Nevertheless, it is time to say ‘Lal Saalam’ in Nepal.

Tuesday 15 April, 2008

Life Goes On

After reading Jyoti Sanyal's obituaries....

There is only one single moment between life and death. So often, there isn't any time for goodbye's. Whatever you've left behind is all that there is; there may never be that final moment to set things 'right'. Somewhere, sometime, I remember someone telling me... There is no certainty in life, so live every minute as if its your last. Enjoy every moment of your life to the fullest, and don't regret what you couldn't do. Take life's simple pleasures seriously - a sunrise, the breeze on a hot day, the sound of waves as they crash against rocks, the smile of a friend, the tears through which the smile slips out.... Enjoy the laughter of the ones you love, the mischief of the little fellows even when you're tired, and remember that life is beautiful.... if you only let it be. Talk to the people who matter to you, and don't be afraid to tell the people who matter, that they do. Don't ever say, 'I'll do it tomorrow", for there may not be any tomorrow. And yesterday is history, so don't hold any grudges, and look forward to every new day. And you will die a happy man, you will die a free soul....

When there is only one life (that we will remember), live it in a way that you choose... there will always be people who will appreciate you only after you are gone, there will always be those that malign you, but be the man you would want to admire, and other's will surely admire you. Don't aspire to gain their admiration, you will only fall. Live to please yourself, while being considerate of others, and you will find that the world will make space for you.

Friday 11 April, 2008

रंगों की दुनिया

एक घुटन सी होती है. सब कुछ रुका सा लगता है. मन में एक अज़ीब सा अंतर्विरोध है. अंदर से एक आवाज़ चीख चीख के कहती है कि इस मायाजाल को समाप्त करो. सब रेत पे पड़े पानी की तरह है कब उड़ जाएगा पता नही. सब तरफ एक अज़ीब सी बनावट है और हर चीज़ रंगी हुई है. कुछ देखना है तो रंग कुरेदना होगा पर कैसे? ये रंग तो चिपक गया है और निकलता ही नही. इन रंगो की बेरंग होली मे हम भी कही गहरे डूबे नज़र आते हैं. मन कहता है चल रे अपने देश, जहाँ रंग लगेगा भी तो कम से कम मिट्टी की महक तो साथ होगी. मन मे उत्साह होता है पर कदम साथ नही देते. इन कदमों को शायद मायावी दुनिया की ज़्यादा समझ है. ये अर्थशास्त्र के आकड़ों को बेहतर समझतें हैं. मन कहता है भाड़ मे जाए अर्थशास्त्र और मायाजाल अपनी तो खाक गंगा किनारे ही लिखी है. मन के बस मे शरीर नही है और आज के युग का सच भी शायद यही है. मेरे अंदर ये अंतरयुद्ध चलता रहता है, जाने क्यूँ आज लिख दिया.

Friday 4 April, 2008

रक्तदान और हिन्दी ब्लॉगजगत


हमारे देश मे हर दिन हज़ारों लोंग वक़्त पर खून ना मिल पाने के कारण काल के गाल मे समा जाते हैं. आप सोच रहे होंगे आज तो विश्व रक्तदान दिवस नही है,फिर मैं इस मुद्दे पर बात क्यूँ कर रहा हूँ. आज एक मित्र के लिए रक्तदान करने अस्पताल जाना हुआ. मैने अपना फ़र्ज़ समझा और रक्तदान किया. इसी आपाधापी में मैने इमरजेंसी वार्ड मे एक परिवार को रोते देखा. पूछताछ करने पर मालूम हुआ की की मरीज़ की हालत बेहद खराब है और खून की सख़्त ज़रूरत है. मुझे लगा की कुछ करना चाहिए पर क्या समझ नही आ रहा था. मैने तुरंत ही रक़्तदान किया था और फिर से करना संभव नही था. इसी उधेड़बुन मे था की तीन लड़के वाहा आए और उन्होने कुछ पूछताछ की और कहा की वो कोशिश करते हैं. एक घंटे के अंदर तीन डोनर अस्पताल आ गये. मैने जा कर उन लड़कों से बात की और पूछा की क्या वो किसी संस्था से जुड़े हुए हैं? उन्होनें कहा किसी एनजीओ से तो नही पर कोंकणी साहित्य और नाटक के प्रचार प्रसार के लिए कुछ १०० लोंगो का उनका एक ग्रूप है. उन्होने सब सदस्यों को फोन किया और डोनर आसानी से मिल गये.मैने सोचा की काश मैं भी किसी ग्रुप से जुड़ा होता तो कुछ मदद की जा सकती थी. किसी और मुद्दे पर जब मैने पोस्ट लिखने की सोची तो दिमाग़ मे ज़ोर से घंटी बज़ी की मैं भी तो तो हिन्दी ब्लॉग जगत से जुड़ा हुआ हूँ. हमारे इस परिवार के सदस्य देश के कोने कोने मे हैं. मेरा एक सुझाव है की अगर हम सब अपने ब्लॉग मे परिचय के साथ साथ अपना रक्त समूह भी लिख दें तो ये एक नेक काम होगा. हिन्दी ब्लॉग जगत की चर्चा आज तक कई विवादो के कारण होती रही है. अगर हम एक डेटाबेस बना पाएँ तो ये एक उदाहरण होगा.ये मेरा निजी विचार है और शायद हर कोई सहमत ना हो पर कोशिश करने क्या हर्ज़ है. रवि रतलामी, चिट्ठाजगत और ब्लॉगवानी के संचालकों से मेरी अपील हैकी वो देंखे की ये डेटाबेस कैसे और कहाँ बनाया जा सकता है.