ब्लाग क्यूँ लिखते हैं? कभी लगता है कि वक़्त क़ी बरबादी है, क्या फ़र्क पड़ता है अगर ना लिखूं तो. शायद किसी और को नही पर मुझे फ़र्क पड़ता है, एक ज़रिया है जहाँ मैं जो चाहूं लिखूं, जो मन मे है वो लिखूं. और अगर कोई पढ़ता है जिसकी सोच मुझसे मिलती है और भी अच्छा. पर मुझे ब्लॉग पर समाचार अच्छे नहीं लगते. कई ब्लॉग्स है जो देश और दुनियाँ के बारे मे लिखते हैं. कई अच्छी जानकारी भी देते हैं. पर कम ही ब्लॉग हैं जो जीवन को नज़दीक से देखतें है. इंडियन डाय्ररी उनमे से एक है. जब मैने ब्लॉग लिखना शुरू किया तो मकसद सिर्फ़ इतना था कि अपनी भाषा के नज़दीक रहूं. अँग्रेज़ी से जीविका चलती है और ब्लॉग मिट्टी से दूरी को कुछ कम करता है. रोज़ न्यूज़रूम के शोर के बाद जब घर के कंप्यूटर को खोलता हूँ तो एक ऐसी दुनिया से रप्ता होता है जहाँ आपको छूट है कि जो चाहे वो सुनो जो ना अच्छा लगे मत पढ़ो.कुछ अपनी कहो कुछ दूसरों क़ी सुनो. सुबह जब सोया था तो उजाला था और अभी शाम ढल चुकी है. इलाहाबाद के बेपरवाह दिनों मे शाम समोसे और चाय के साथ होती थी और साथ में पूरी यूनिवर्सिटी का समाचार अलग से.धीरे से चाय क़ी जगह काफ़ी और समोसे क़ी जगह पिज़्ज़ा ने ले ली और बतकही कहीं गायब ही हो गयी. ब्लॉग के बाद शायद बतकही फिर से वापस है. रोज़ क़ी तरह फिर से सोच ज़ारी है कि खाना बनाया जाय या ऑर्डर करूँ. खैर वो बाद मे देखूँगा, आज कोई घर आने वाला है. इंतेज़ार का अपना ही एक मज़ा है.इस भागमभाग में संडे किसी त्योहार से कम नहीं लगता और अगर पार्टी कि मेहमान नवाज़ी आपके सर हो तो मज़ा कुछ ज़्यादा ही होता है.
Sunday, 22 June 2008
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6 comments:
सही सोच रहे हैंब्लॉग के बारे में.
करिये मेहमान नवाजी. शुभकामनाऐं.
इंतज़ार का अपना ही मज़ा है
शुभकामनाऐं.
बधाई, इतनी अच्छी रचना के लिए, बहुत ही अच्छे तरीके से कहा आपने.विकास भाई , न जाने कैसे आप का ब्लॉग मेरी आँखों से बचा रहा....अब तो आना जाना लगा रहेगा.कभी हमारे ब्लॉग पर भी तशरीफ़ लायें!
लिखने पढ़ने,
सुनने सुनाने वालों से मिलने को जी चाहता है
बस इसीलिये आ गए भाई ब्लॉग्स की दुनिया में.इधर न आते तो आपसे कैसे बतियाते ?
ब्लॉग तो होता ही इसलिए है। :)
"आज कोई घर आने वाला है. इंतेज़ार का अपना ही एक मज़ा है"
आप की पोस्ट में जो भी कहा गया है सही है अब तो आपका भी
इंतज़ार रहेगा हमको
मुझे अपने ब्लॉग पर खींचने के लिए आपका आभारी हूँ
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