कई दिन सोचने के बाद आज ब्लॉग शुभारंभ करने की ठानी, रवि रतलामी जी के ब्लॉग से किसी तरह हिन्दी टाइपिंग के औज़ार प्राप्त किए और सोचा एक पोस्ट लिखी जाए. चूँकि आज ब्लॉग शुरू कर रहा हू, तो एक शुरुआत के बारे ही मे बताता हू. बात है सन 2005 की, शुरुआत मेरे पत्रकार बनने की. कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद एक बड़े अँगरेज़ी अख़बार मे पूरे जोशो खरोश के साथ पहुचा काम करने. आखों मे सपना था कुछ नया करने का और दुनिया बदल देने का, गौर फरमाइए ये सपना हर पत्रकारिता के छात्र का होता है. पहले ही दिन मुझे इस बात का आभास हो गया की साहब ये तो कुछ अजब ही मायाजाल है. काम दिया गया एक खबर को पठनीय बनाने का, खूब दिल लगा कर किया और अंत मे खूब खुश था की कॉलेज मे सीखी सारी तकनीकी बातों का आज प्रयोग किया है. फिर एडिटर महोदया ने अपने केबिन मे बुलवाया और ऐसा झाड़ा की सारा जोश जाता रहा, कहा तुम लोंग क्या सोचते हो की कॉलेज मे पढ़ लेने से पत्रकार बन जाओगे, कई साल लग जाते है सीखने में. अगले दिन वही खबर अख़बार मे देखी तो लगभग वैसे ही छपी थी जैसी हमने बनाई थी. अब हम सोंच मे थे की क्या हमारी ग़लती है की हमने कॉलेज मे सीखा. आज से दस साल पहले पत्रकारिता पढ़ाने वाले कॉलेज कम थे पर जब आज है तो हमारे आदरणीय एडिटर्स को अपनी धारणा बदलनी होगी. ये सही है की अनुभव के साथ ही रंग चढ़ता है , पर अगर पत्रकारिता के छात्रों को आदर से देखा जाए तो निशित ही परिणाम बेहतर होंगे और ज़्यादा से ज़्यादा युवा इस पेशे को अपनाएँगे.
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4 comments:
हिन्दी ब्लॉगजगत् में आपका स्वागत् है. नियमित लेखन की शुभकामनाएँ.
धन्यवाद रवि जी
स्वागत है। और, अंग्रेजी पत्रकार बनना कोई विडंबना नहीं है। अच्छा है अंग्रेजी पत्रकार रहते हुए तुम्हें हिंदी की चिंता है। लेकिन, ये वर्ड वेरीफिकेशन हटा दो तो, टिप्पणी करने वालों के लिए सहूलियत होगी। लेआउट में कमेंट्स में नीचे वर्ड वेरीफिकेशन को नो कह देना है बस।
हमारी शुभकामनाएं भी स्वीकार करें बन्धु!
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