कितने लोंग है इस दुनिया में जो अपने कंफर्ट ज़ोन से निकल कर समाज और दुनिया के लिए कुछ करना चाहते हैं। हम सब सोचते तो है पर असल मे कर गुज़रने वाले बेहद कम होते हैं। रेचल कोरी एक ऐसा ही नाम है, २३ वर्षीय इस अमेरिकन लड़की ने जो किया वो एक मिसाल है। बचपन से ही रेचल को मानवीय संवेदनाओं की गहरी समझ थी। दस साल की उमर मे इस नवजवान के शब्द उसकी जीवटता और समझ को दर्शाने के लिए काफ़ी है । स्कूल के कार्यक्रम में रेचल ने ये शब्द कहे थे, " We have got to understand that they (third world countries) dream our dreams and we dream theirs.We have got to understand that we are them and they are we."विश्व शांति के लिए कुछ कर गुज़रने की चाह रेचल को हिंसाग्रस्त इज़राईल और फ़िलिस्तीन बॉर्डर तक ले आई। इज़राइल के फ़िलिस्तीन के कुछ हिस्सों पर 'अनैतिक' क़ब्ज़े के खिलाफ रेचल ने आवाज़ उठाई। इस आवाज़ को बुलंद रखनें की कोशिश में १६ मार्च, २००३ को रेचल की मृत्य हो गयी । गाज़ा मे फैले आतंक के लिए कौन ज़िम्मेदार है, ये आज भी बहस का मुद्दा है। कई अमेरिकन संस्थाओं ने रेचल के फ़िलिस्तीन के लिए संघर्ष करने के फ़ैसले को ग़लत ठहराया। पर सवाल ये नही है की इस नवजवान ने किसके लिए संघर्ष किया, ज़रूरत है तो उसके जज़्बे को सलाम करने की। रेचल के बारे मैं खुद ज़्यादा ना लिख कर उसके कहे गये कुछ शब्दो को चिपका रहा हूँ, आशा है ये शब्द हर एक के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनेगें. रेचल ने ये शब्द गाज़ा में बिताए गये दिनों के दौरान कहे थे. "I should at least mention that I am also discovering a degree of strength and of basic ability for humans to remain human in the direst of circumstances - which I also haven’t seen before. I think the word is dignity. I wish you (Rachel's mother) could meet these people. Maybe, hopefully, someday you will." ---
रेचल के बारे मे और जानने के लिए ये लिंक देखें.
http://www.guardian.co.uk/world/2003/mar/18/israel1
Thursday, 20 March 2008
सलाम जिंदगी
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2 comments:
बड़ा संबल मिला रैसल कोरी के व्यक्तित्व के बारे में जानकर। एक पराए मुल्क में जाकर वहां के लोगों के संघर्ष में अपनी जान देना। दिमाग के किसी कोने में चे-ग्वेआरा की छवि कौंध गई। विकास आप अच्छा लिख रहे हैं।
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद.
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