२३ मार्च, १९३१ को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी दी गयी थी। आज इन शहीदों की पुण्यतिथि से जुड़ी कुछ खबरें चैनेलों पर रुक रुक के आ रही हैं। अख़बारों मे कुछ कोने रंगे गये है। ब्लॉग जगत मे भी कुछ हलचल है। मुद्दा हर मंच पर यही है की हम अपने शहीदों का सम्मान नही करते, उनके नाम पर पार्क और पुतलों आदि का निर्माण तो कर दिया जाता है पर कोई देखभाल नही करता। सही है, आज चिंता कर ली कल ख़त्म। फिर से किसी शहीद की पुण्यतिथि आएगी और फिर रंगे जाएगें कुछ काग़ज़। ठीक ही तो है, जब हम अपने जवानों की चिंता नही करते तो फिर शहीदों की चिंता कौन करे। हमारे जवान बुरी हालत में काम करते है। आप कहेंगें सेना में तो काफ़ी आधुनिकरण हुआ है, सच है, पर ज़्यादा तर हथियारों और युद्ध अभ्यास पर खर्च किया जाता है। अगर एक जवान की बात करे तो उसका वेतन आज भी ६ से ७ हज़ार रुपये ही है। एक नज़र डालते हैं हमारे पड़ोसी मुल्कों के जवानो को मिलने वाले वेतन पर।श्री लंका की आर्मी के एक जवान को ३०,००० रुपये का आरम्भिक वेतन मिलता है. ( source- http://www.groundviews.org/). पाकिस्तान के जवानों को भी भारतीय जवानो से दोगुना वेतन मिलता है। लगातार दबाव में काम करने वाले जवानों की अक्सर अपने अफसरों से कहासुनी हो जाती है। 'जवान ने अफ़सर की हत्या की' , ऐसी खबरें अब आम हो गयी है। सेना के रहनुमा कहते है की जवानो को तनाव से मुक्ति दिलाने के लिए विशेष कदम उठाए जा रहे है, योग आदि। अच्छा है, करना चाहिए पर वेतन के बारे मे कोई कुछ नही कहता है। सुभाष चंद्र बोस ने कहा था 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा', लाखों नवजवान नेता जी के आवाहन पर सेना में शामिल हो गये थे। आज के युग में सबकुछ बाज़ार तय करता है, ऐसे में अगर जवान तनाव में है तो उसकी हालत समझी जा सकती है। अगर वेतन अच्छा मिले तो कम से कम अपने परिवार को सुख दे पाने की खुशी मे ही ये सैनिक खुश रह सकते है। अगर अफसरों की बात करे तो यहाँ भी स्थिति कोई खास अच्छी नही है। आज भी भारतीय सेना में अफसरों के ११,२०० पद खाली हैं। आम तौर पर भारतीय अफ़सर सेना से ३०, ४० या ५० से ६० की उमर में रिटायर होते है। सरकार के पास पेंशन देने के अलावा कोई और योजना होती नही। कार्पोरेट सेक्टर भी इन अफसरों के प्रति उदासीन रवैया ही रखता है। सेना मे बिताए गये समय का अनुभव किसी भी कंपनी के लिए फ़ायदेमंद हो सकता है। पर जमाना तो यंगीस्तान का है तो इन अफसरों को कौन पूछे।अगर अमेरिका जैसे देशो में कंपनियाँ ऐसा रवैया दिखाए तो सरकार उनके खिलाफ कदम उठा सकती है। भारत मे तो सरकार के पास कितने ही काम है, ऐसे तुच्छ काम के लिए समय कहाँ है। हमेशा की तरह मीडिया भला ये मुद्दा क्यूँ उठाए, बिकने वाला न्यूज़ आइटम थोड़े ना है। आप भी सोचेंगे क्या सिनिकल आदमी है पर इस देश मे कौन नही है?
Sunday, 23 March 2008
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4 comments:
विचारोत्तेजक लेख है, आप अच्छा लिखते है, पता चला कि आप इलाहाबाद से, कृपया अपने बारे कुछ बताये।
You write well. Look forward to reading lots more.
Very few people write abt topic like this, and when they do they should be encouraged. Very well written, keep it up. :)
विकास आप ने बहुत अच्छा लिखा हे, लेकिन हमारे नेताओ के पॆट ही नही भरते, वो ओर किसी की कया सुने गे,लेकिन जब जवान ओर किसान ने हिम्मत हार दी उस दिन कया होगा, यही सोच कर डर लगता हे.
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