२० मार्च को हमने विश्व जल दिवस मनाया। जल से जुड़े मुद्दों पर इस दिन मीडिया मे कई रोचक खबरें आती है। इस बार भी लगभग हर चैनल (नौटंकियों को छोड़ के) पर कुछ खबरें आई। ब्लॉग जगत में भी कुछ रोचक लेख पढ़ने को मिले। मेरा दिमाग़ कुछ धीरे और अपने सुर ताल से काम करता है, सो ये पोस्ट २० मार्च की जगह आज आ रही है। जहा मीडिया में पर्यावरण से जुड़ी खबरों का आकाल रहता है और ग्रीन पत्रकारों को कम ही बोलने और लिखने का मौका मिलता है, एक पत्रकार ऐसा भी है जो पूरी तरह से पानी से संबंधित मुद्दों को उठाने में सालों से लगा हुआ है। Shree Padre, इन्हें हम पानी का पत्रकार भी कह सकते हैं। श्री का गाँव मंगलूर और कासरगोड के बीच पड़ने वाली हरी भारी वादियों मे स्थित है। ये गाँव भी Western Ghat की कई खूबसूरत वादियों के तरह मनोहारी है।यहाँ लोंग जीविकोपार्जन के लिए खेती पर निर्भर हैं। भारत के इस हिस्से में पान और सुपारी की खेती जम के होती है। श्री का परिवार भी लंबे अरसे से खेती मे ही रचा बसा है। १९८५ में वनस्पति शास्त्र मे पी.जी करने के बाद जब श्री अपने गाँव लौटे तो उस वक़्त खेती की हालत बेहद खराब थी। किसानों के पास जानकारी का अभाव था, ऐसे समय में श्री नें पत्रकारिता को चुना। श्री ने 'आडिके' नाम से एक पत्र निकालना शुरू किया और देखे ही देखते ये पत्र किसानो के बीच लोकप्रिय हो गया। किसानों के पास अब खेती की ताज़ा और अच्छी जानकारी मौजूद थी। तब से शुरू हुआ ये सिलसिला आज भी जारी है। पिछले कुछ वर्षो से श्री पानी से संबंधित समस्याओं पे लगातार रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उनके नियमित लेख अँग्रेज़ी और कन्नड़ की पत्र पत्रिकाओं मे आते रहते हैं। rain water harvesting को श्री पानी की कमी की समस्या से निपटने का सबसे महत्वपूर्ण साधन मानते है। श्री के शब्दों मे ये एक साइंस है और इसपे और शोध किया जाना चाहिए। किसानो के लिए समर्पित श्री कहते हैं मेन स्ट्रीम मीडिया में किसानों के लिए कम ही जगह है। श्री ने एक वेब पोर्टल को दिए साक्षात्कार मे कहा, "Those who grow never write; those who write don't grow". 'आडिके पत्रीके' ने नयी तकनीक और पुराने आज़माए हुए कृषि नुस्खो को western ghat के लगभग हर किसान तक पहुचा दिया है। आज 'आडिके पत्रीके' के ७५ हज़ार से ज़्यादा पाठक है। श्री ने उस मिथक तो तोड़ दिया की सफल अख़बार सिर्फ़ धनाढ्य घराने ही चला सकते हैं।
श्री की राह इतनी आसान नही थी, कुछ किसान जो पढ़ नही सकते उन तक समाचार कैसे पहुचेया जाए ये एक समस्या थी। श्री ने एक नायाब तरीका निकाला, उन्होने रिपोर्टरों की एक टीम बनाई जो की जो किसानो को चौपाल लगाकर जानकारी देने लगी। ये तरकीब काम कर गयी और अनपढ़ किसानों को भी सार्थक पत्रकारिता का लाभ मिलने लगा। श्री ने कई किताबें भी लिखी हैं।मेरा प्रयास है की श्री के साथ एक इंटरव्यू किया जाय। आशा है वो समय देंगे और ब्लॉग पर उनका साक्षात्कार शीघ्र उपलब्ध होगा। श्री के बारे में और जानने के लिए ये लिंक देखे---
http://www.worldproutassembly.org/archives/2006/02/the_rain_man_of.html
Monday, 24 March 2008
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6 comments:
बहुत खूब..ईश्वर आपको सफलता दे
सुन्दर। शानदार!
श्री के प्रयासों को सादर प्रणाम। वे आगे परवान चढ़ें।
क्या बात है। विकास, बहुत अच्छी खबर इतने लोगों तक पहुंचाई तुमने। सचमुच ऐसे ही ढेर सारे लोगों की बहुत जरूरत है।
बहुत खूब!!
बहुत ही प्रेरक जानकारी। ऐसे नए प्रयासों का सामने आना ज़रूरी है।
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